यह तो उनकी बात हुई जो समाज को संभालने का काम कर रहे हैं. अब कुछ बात उनकी जिनके जीवन को कोरोना संकट ने बदलने का काम किया है.
मध्यप्रदेश के इंदौर से मालती सक्सेना लिखती हैं ‘मेरे भाई से कुछ मतभेद इतने अधिक बढ़ते गए कि पहले मिलना बंद हुआ, उसके बाद पांच बरस से सभी तरह का संवाद बंद हो गया. अब जब एक दिन पता चला कि वह कोरोना संकट की चपेट में आ गया है. कोरोना संक्रमित है, तो सबसे पहले मैंने उसके परिवार से संवाद किया. परिवार के आइसोलेशन की प्रक्रिया में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई. यह मैंने पति और बच्चों से छुपाकर किया. क्योंकि वह इसके लिए किसी भी तरह सहमत नहीं थे. क्योंकि भाई ने जिस तरह का व्यवहार हमारे साथ किया था. वह दिल तोड़ने वाला था. लेकिन मैने तय किया कि जीवन सबसे बड़ा है. किसी के जीवन को बचाने में सहयोग से बड़ा कुछ नहीं. इससे कम से कम मेरे मन पर पड़ा बोझ हल्का हो गया.’
ठीक होने के बाद भाई ने घर आकर गिले-शिकवे दूर किए. रिश्तों के मुरझाते फूल फिर खिल गए. यह तो संकट में घिरे अपनों का साथ देने की कहानी है.
लेकिन यह कोरोना संकट से इतर हमें यह भी सिखाता है कि जीवन कितना छोटा और परिवर्तनशील है. मन पर मैल की चादर जितनी कम से कम हो उतनी खुशियां महकती रहेंगी. हम एक-दूसरे का साथ सामाजिक दूरी के दौर में भी सरलता से निभा सकते हैं. बस, स्नेह और आत्मीयता के द्वार खुले रखने हैं. यह संकट मनुष्य के मूल गुणों मनुष्यता, अनुराग की ओर ले जाने वाला साबित हो रहा है. हमें बस यह ख्याल रखना होगा कि संकट टलने के बाद भी एक-दूसरे का गहरा ख्याल बना रहे.
कोरोना से उपजे संकट ने हमारी करुणा, मनुष्यता को पुनर्जीवित करने का काम किया है. देश में पुलिस के लेकर गहरी नकारात्मकता है. संभव है, कि आप कभी पुलिस थाने ही न गए हों लेकिन पुलिस का ख्याल आते ही हमारा मन बेचैन हो जाता है. इस पुलिस की गहरी सेवा भावना की तस्वीरें देशभर से आ रही हैं. स्वयं को संकट में डालकर हमारी जान बचाने के काम में लगे डॉक्टरों की कहानियां, तस्वीरें भी करुणा, मुनष्यता के विस्तार की कहानी कहती हैं. इसके साथ ही हम अपने ऐसे मित्रों को काम में जुटा देख रहे हैं, जिनको भावुकता, सहृदयता से हमेशा कुछ दूरी पर पाया.
पुलिस और डॉक्टरों के व्यवहार के प्रति हमारी शिकायतों की सूची लंबी है. लेकिन जब जीवन पर संकट गहराया, इन दोनों के सेवा भावना की ऐसी कहानियां सामने आ रही हैं, जो यह बता रही हैं कि हमारे बीच का पुल कमजोर जरूर हुआ है लेकिन वह टूटा नहीं है. विशेषकर पुलिस के संदर्भ में यह कहना गलत नहीं होगा कि इसे सबसे अधिक नुकसान राजनैतिक हस्तक्षेप से हुआ है. संभव है एक ऐसे समय में जब रोजमर्रा की जिंदगी में यह कुछ कम हुआ दिखता है, अचानक से पुलिस की सहृदयता बढ़ती दिख रही है.
अपने परिवार की चिंता छोड़ स्वयं को जोखिम में डालने वाले डॉक्टरों की सेवा और समर्पण की दुनिया भर में सराहना हो रही है. भारतीय संदर्भ में यह काम इसलिए अधिक बड़ा हो जाता है, क्योंकि हमारे पास कोरोना से लड़ने के साधन सीमित हैं. हम किसी तरह इस संकट का मुकाबला कर रहे हैं. दिल्ली सरीखे राज्य के मुखिया जनता से मदद की पुकार कर रहे हैं. ऐसे समय में भी डॉक्टर कहीं से पीछे नहीं हट रहे हैं.